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क्रिकेट का विकास: टेस्ट मैचों से लेकर टी20 लीग्स तक का सफर

क्रिकेट को अक्सर “जेंटलमैन्स गेम” कहा जाता है, लेकिन आज यह केवल एक खेल नहीं बल्कि एक वैश्विक मनोरंजन उद्योग बन चुका है। टेस्ट क्रिकेट की धीमी और पारंपरिक लय से लेकर टी20 लीग्स की तेज़ रफ्तार तक, इस खेल का सफर कई उतार-चढ़ाव और बहसों से भरा रहा है। सवाल यह उठता है कि क्या क्रिकेट ने वास्तव में प्रगति की है, या यह अपने मूल स्वरूप से बहुत दूर चला गया है?

टेस्ट क्रिकेट: परंपरा और धैर्य की पहचान

टेस्ट मैच हमेशा से क्रिकेट की आत्मा रहे हैं। पांच दिन तक चलने वाला यह प्रारूप खिलाड़ियों की तकनीक, धैर्य और मानसिक मजबूती की असली परीक्षा लेता है। डॉन ब्रैडमैन, सुनील गावस्कर और राहुल द्रविड़ जैसे खिलाड़ी इसी प्रारूप में अपनी असाधारण पहचान बना पाए। क्रिकेट प्रेमियों का मानना है कि टेस्ट ही असली क्रिकेट है क्योंकि इसमें खेल का हर पहलू सामने आता है।

लेकिन आज की तेज़-रफ्तार जिंदगी में पांच दिन तक एक मैच देखने का धैर्य दर्शकों में कम हो गया है। यही कारण है कि टेस्ट क्रिकेट, विशेषकर युवा पीढ़ी के बीच, लोकप्रियता खोता जा रहा है। यह सवाल महत्वपूर्ण है कि क्या क्रिकेट का पारंपरिक स्वरूप भविष्य में बचा रह पाएगा?

वनडे क्रिकेट: संतुलन की खोज

1970 के दशक में वनडे क्रिकेट आया और इसने खेल को एक नई दिशा दी। सीमित ओवरों में खेल खत्म होने के कारण यह दर्शकों के लिए अधिक रोचक और व्यावहारिक साबित हुआ। कपिल देव की कप्तानी में भारत की 1983 वर्ल्ड कप जीत ने वनडे फॉर्मेट को भारतीय उपमहाद्वीप में धर्म जैसा दर्जा दिला दिया।

हालांकि, टी20 के आने के बाद वनडे क्रिकेट की लोकप्रियता में गिरावट देखने को मिली है। आज कई दर्शक मानते हैं कि 50 ओवर का खेल न तो टेस्ट जितना क्लासिक है और न ही टी20 जितना रोमांचक।

टी20 क्रिकेट और लीग्स का जादू

2005 में अंतरराष्ट्रीय टी20 मैच और फिर 2008 में आईपीएल ने क्रिकेट का चेहरा पूरी तरह बदल दिया। तीन घंटे का हाई-इंटेंसिटी मुकाबला, ग्लैमर, एंटरटेनमेंट और लाखों-करोड़ों का बिज़नेस – यही आज क्रिकेट की नई पहचान है। युवा दर्शकों और कॉर्पोरेट जगत ने इसे हाथों-हाथ लिया।

टी20 ने क्रिकेट को ग्लोबल बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। अफगानिस्तान, नेपाल और आयरलैंड जैसे देशों ने इसी फॉर्मेट में अपनी पहचान बनाई। लेकिन आलोचक मानते हैं कि टी20 ने खिलाड़ियों को “क्रिकेटर्स” से “एंटरटेनर्स” बना दिया है। तकनीक और धैर्य की बजाय पावर-हिटिंग और शोबिज़ को अहमियत मिलने लगी है।

फायदे और नुकसान: दोहरी तस्वीर

टी20 लीग्स ने खिलाड़ियों को आर्थिक सुरक्षा दी, क्रिकेट को नए बाजारों में पहुँचाया और दर्शकों को मनोरंजन का नया रूप दिया। वहीं दूसरी ओर, क्रिकेट का संतुलन बिगड़ गया। कई खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय मैचों से ज्यादा फ्रेंचाइज़ी लीग्स को प्राथमिकता देने लगे हैं। इससे राष्ट्रीय क्रिकेट के भविष्य पर सवाल खड़े होते हैं।

भविष्य की दिशा: परंपरा और आधुनिकता का संगम

क्रिकेट को जीवित रखने के लिए ज़रूरी है कि टेस्ट, वनडे और टी20 तीनों फॉर्मेट का संतुलन बना रहे। आईसीसी और विभिन्न क्रिकेट बोर्ड को यह तय करना होगा कि केवल मुनाफ़े के पीछे भागना है या खेल की आत्मा को भी बचाए रखना है। शायद भविष्य क्रिकेट का वही होगा जहाँ टेस्ट की गंभीरता, वनडे का संतुलन और टी20 का रोमांच – तीनों का मिश्रण हो।

क्रिकेट का विकास एक प्रेरणादायक यात्रा है, जिसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलू मौजूद हैं। सवाल यही है कि दर्शक और खिलाड़ी मिलकर इस खेल को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं – क्या यह खेल बनेगा, या सिर्फ़ एक व्यवसाय?


अफगानिस्तान बनाम हांगकांग एशिया कप 2025: लाइव स्ट्रीमिंग, टीम अपडेट्स और ताज़ा बदलावों पर गहराई से चर्चा


प्रश्न 1: अफगानिस्तान बनाम हांगकांग का एशिया कप 2025 मुकाबला इतना चर्चा में क्यों है, जबकि ये टीमें पारंपरिक दिग्गज नहीं मानी जातीं?
उत्तर: यह मैच इसलिए सुर्खियों में है क्योंकि यह एशिया कप 2025 का उद्घाटन मुकाबला है। भले ही भारत, पाकिस्तान या श्रीलंका जैसी टीमें इसमें शामिल नहीं हैं, लेकिन अफगानिस्तान और हांगकांग दोनों ही पिछले कुछ वर्षों में क्रिकेट में बड़ा उभार दिखा चुके हैं। अफगानिस्तान की ताकत उनकी स्पिन बॉलिंग है, जबकि हांगकांग ने अपने ओपनिंग बल्लेबाज़ों अंशुमान रथ और ज़ीशान अली की शानदार फॉर्म के दम पर एशिया कप से पहले मजबूत तैयारी की है। 2022 के बाद से क्रिकेट में एसोसिएट नेशंस को लेकर उत्साह काफी बढ़ा है, और यही कारण है कि यह मैच छोटे देशों के उभार का प्रतीक माना जा रहा है।


प्रश्न 2: 2025 तक अफगानिस्तान क्रिकेट टीम में कौन से बड़े बदलाव देखने को मिले हैं?
उत्तर: 2022 के बाद अफगानिस्तान क्रिकेट में सबसे बड़ा बदलाव उनकी बॉलिंग यूनिट का और मजबूत होना है। राशिद खान अभी भी कप्तानी संभाल रहे हैं और मोहम्मद नबी, नूर अहमद और फज़लहक फ़ारूकी जैसे बॉलर इस टीम को खतरनाक बना रहे हैं। हालांकि उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बैटिंग लाइन-अप है। रहमानुल्लाह गुरबाज़ जैसे बल्लेबाज़ से टीम को बड़ी उम्मीदें हैं, लेकिन उनका हालिया फॉर्म निराशाजनक रहा है। यह असंतुलन दिखाता है कि अफगानिस्तान अभी भी बैटिंग डेप्थ बनाने में संघर्ष कर रहा है।


प्रश्न 3: हांगकांग टीम ने 2025 एशिया कप के लिए कैसी तैयारी की है और उनका सबसे बड़ा हथियार कौन है?
उत्तर: हांगकांग ने एशिया कप से पहले यूएई में लंबा कैंप लगाया और चार वॉर्म-अप मैच खेले। उनका सबसे बड़ा हथियार उनकी टॉप ऑर्डर बैटिंग है। अंशुमान रथ और ज़ीशान अली ने इस साल लगातार शतकीय पारियां खेली हैं और टीम की उम्मीदें इन्हीं पर टिकी हैं। 2022 के बाद से हांगकांग ने अपने घरेलू स्ट्रक्चर पर ध्यान दिया है और नए खिलाड़ियों को तैयार किया है, जो अब बड़े मंच पर प्रदर्शन करने को तैयार हैं।


प्रश्न 4: क्या अफगानिस्तान की हालिया हार का असर इस मैच पर पड़ सकता है?
उत्तर: हाँ, अफगानिस्तान पाकिस्तान से त्रिकोणीय सीरीज़ का फाइनल हारकर आया है और इससे उनकी मानसिक स्थिति थोड़ी कमजोर हो सकती है। एशिया कप जैसे टूर्नामेंट में हर मैच का प्रेशर बहुत बड़ा होता है। ऐसे में हांगकांग को मौका मिल सकता है क्योंकि अफगानिस्तान की थकान और निराशा उनके खेल पर असर डाल सकती है। 2025 तक क्रिकेट में यह साफ हो चुका है कि छोटी टीमें बड़े नामों के खिलाफ मौके भुनाने में पीछे नहीं रहतीं।


प्रश्न 5: भारत में अफगानिस्तान बनाम हांगकांग मैच कहां और कैसे देखा जा सकता है?
उत्तर: भारत में यह मैच 9 सितंबर 2025 को रात 8:00 बजे से खेला जाएगा और इसका लाइव प्रसारण Sony Sports Network पर होगा। ऑनलाइन दर्शकों के लिए Disney+ Hotstar ऐप और वेबसाइट पर इसकी लाइव स्ट्रीमिंग उपलब्ध होगी।


प्रश्न 6: 2025 में एशिया कप का फॉर्मेट और आयोजन किन नई चुनौतियों और रुझानों को दिखा रहा है?
उत्तर: 2025 में एशिया कप का आयोजन पहले से कहीं अधिक प्रतिस्पर्धी माना जा रहा है क्योंकि छोटे देशों को अब बराबरी का मौका मिल रहा है। श्रीलंका, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और हांगकांग जैसी टीमें अब ‘जायंट किलर्स’ के रूप में सामने आ रही हैं। साथ ही, टी20 लीग्स के बढ़ते प्रभाव के कारण खिलाड़ियों की स्किल और फिटनेस लेवल पहले से बेहतर हुई है। नई चुनौती यह है कि क्रिकेट शेड्यूल बेहद व्यस्त हो चुका है, जिससे खिलाड़ियों की थकान और चोट की समस्या बढ़ रही है।

एशिया कप 2025: क्या शिवम दुबे सच में हार्दिक पंड्या का विकल्प बन पाएंगे?

टीम इंडिया की नई रणनीति या असुरक्षा?

भारत के गेंदबाज़ी कोच मोर्ने मोर्कल ने एशिया कप 2025 से पहले साफ कर दिया है कि टीम शिवम दुबे को हार्दिक पंड्या-जैसा विकल्प मान रही है। यानी दुबे को न सिर्फ बल्ले से योगदान देना होगा, बल्कि गेंद से भी चार ओवर फेंकने की जिम्मेदारी उठानी होगी। सुनने में यह रणनीति लचीली लगती है, लेकिन क्या यह वास्तव में टीम की ताकत है या फिर संसाधनों की कमी छिपाने की कोशिश?

हार्दिक का खालीपन और दुबे पर बोझ

हार्दिक पंड्या भारतीय क्रिकेट में एक अनोखा संतुलन लाते थे—धमाकेदार बल्लेबाज़ी और भरोसेमंद गेंदबाज़ी। लेकिन अब टीम उनकी जगह भरने के लिए शिवम दुबे को आगे कर रही है। सवाल यह है कि क्या दुबे के पास वही क्लास, अनुभव और निरंतरता है जो हार्दिक को खास बनाती थी? एक खिलाड़ी को सिर्फ इसलिए “हार्दिक जैसा” कहना क्या न्यायसंगत है, जब उनके करियर का अधिकांश हिस्सा पार्ट-टाइम जिम्मेदारियों में ही बीता हो?

इंग्लैंड के खिलाफ प्रदर्शन—क्या काफी है?

फरवरी में इंग्लैंड के खिलाफ टी20 मैच में दुबे ने दो ओवर डालकर दो विकेट चटकाए थे। उस प्रदर्शन को अब उनकी गेंदबाज़ी का प्रमाण माना जा रहा है। लेकिन क्या सिर्फ एक मैच का आंकड़ा किसी बड़े टूर्नामेंट की रणनीति का आधार हो सकता है? यह सोच खुद टीम मैनेजमेंट की जल्दबाज़ी और असुरक्षा को दर्शाती है।

गंभीर और सूर्या का “लचीलापन” प्रयोग

गौतम गंभीर और सूर्यकुमार यादव की कप्तानी में टीम इंडिया अब पार्ट-टाइम गेंदबाज़ों पर ज़्यादा भरोसा दिखा रही है। अभिषेक शर्मा, रिंकू सिंह और यहां तक कि खुद सूर्या को भी ओवर डालने का मौका मिल रहा है। पर क्या यह वाकई लचीलापन है, या फिर यह संकेत है कि टीम के पास पक्के गेंदबाज़ी विकल्प कम पड़ रहे हैं? इस “लचीलापन” का नतीजा यह भी हो सकता है कि मैच के अहम पलों में कप्तान के पास भरोसेमंद विकल्प न हों।

शिवम दुबे पर दबाव और वास्तविकता

शिवम दुबे वर्ल्ड कप विजेता टीम का हिस्सा जरूर रहे हैं, लेकिन उन्हें गेंद से कम ही मौके मिले। अब अचानक उन्हें चार ओवर फेंकने वाला प्रमुख ऑलराउंडर बना देना कहीं न कहीं अवास्तविक उम्मीदें पैदा करता है। यदि वे फ्लॉप रहे, तो जिम्मेदारी सिर्फ उन पर नहीं, बल्कि मैनेजमेंट की नीतियों पर भी जाएगी।

निष्कर्ष

टीम इंडिया का शिवम दुबे को हार्दिक पंड्या-जैसा विकल्प बताना एक बड़ा दांव है, लेकिन इसमें खामियां भी साफ झलकती हैं। भारतीय क्रिकेट अक्सर किसी खिलाड़ी पर ज़रूरत से ज़्यादा दबाव डाल देता है और फिर असफल होने पर उसी खिलाड़ी को बलि का बकरा बना देता है। सवाल यह है कि क्या एशिया कप 2025 में भी यही कहानी दोहराई जाएगी? या फिर दुबे वाकई इस चुनौती को अवसर में बदलकर भारतीय क्रिकेट को नई दिशा देंगे? फिलहाल तो यह रणनीति भरोसे से ज़्यादा जोखिम भरी लग रही है।

श्रेयस अय्यर का पलटवार: कप्तानी पर उठते सवाल और असली हकीकत

तीन टीमों के फाइनल तक का सफर

श्रेयस अय्यर ने बीते कुछ सालों में आईपीएल में अपनी पहचान सिर्फ बल्लेबाज़ के रूप में नहीं, बल्कि कप्तान के तौर पर भी बनाई है। दिल्ली कैपिटल्स को 2020 में पहली बार फाइनल तक पहुंचाना, कोलकाता नाइट राइडर्स के साथ 2025 में खिताब जीतना और फिर पंजाब किंग्स को एक दशक बाद फाइनल तक ले जाना—यह सब उनके नेतृत्व की क्षमता को दिखाता है। आंकड़े बताते हैं कि अय्यर ने हर टीम में फर्क डाला है, लेकिन सवाल यह है कि इतनी उपलब्धियों के बाद भी उन्हें बार-बार आलोचना क्यों झेलनी पड़ती है?

पंजाब में आज़ादी, KKR में उपेक्षा

पंजाब किंग्स के साथ उनका अनुभव बिल्कुल अलग था। वहां उन्हें पूरा समर्थन मिला—कोच, मैनेजमेंट और खिलाड़ियों का भरोसा, जिसकी वजह से वे फैसलों में खुलकर शामिल हो पाए। लेकिन कोलकाता नाइट राइडर्स के समय की बातें करते हुए अय्यर ने साफ कहा कि वे “पूरी तरह से मिक्स में नहीं थे।” यह बयान कहीं न कहीं टीम मैनेजमेंट की अंदरूनी राजनीति और भरोसे की कमी को उजागर करता है। सवाल उठता है कि जब कप्तान को ही हाशिये पर रखा जाए, तो टीम कैसे बेहतर प्रदर्शन करेगी?

आलोचना के पीछे की कहानी

अय्यर का कहना है कि “मैं बतौर कप्तान और खिलाड़ी बहुत कुछ ऑफर करता हूं।” यह आत्मविश्वास वाजिब है, लेकिन आलोचकों का तर्क यह है कि उन्होंने फाइनल में पहुंचाया जरूर, लेकिन खिताब दिलाने में असफल रहे—खासतौर पर पंजाब किंग्स, जो अब भी ट्रॉफी से महरूम है। लेकिन क्या एक खिताब न जीत पाने से उनकी बाकी उपलब्धियां बेकार हो जाती हैं? या यह सिर्फ आसान टारगेट बनाने का तरीका है?

भारी प्राइस टैग और दबाव

पंजाब ने अय्यर को 26.75 करोड़ रुपये की कीमत पर खरीदा। यह न सिर्फ मीडिया की सुर्खियों में रहा, बल्कि उनके ऊपर उम्मीदों का बोझ भी और बढ़ गया। हकीकत यह है कि इतनी भारी कीमत के बाद खिलाड़ी को अक्सर प्रदर्शन से ज़्यादा ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है। खिताब न जीतने का ठीकरा भी कप्तान के सिर पर ही फोड़ दिया जाता है।

कप्तानी या प्रयोगशाला?

आईपीएल फ्रेंचाइज़ियों में लगातार यह देखा गया है कि कप्तानों को स्थिर माहौल नहीं दिया जाता। कभी नीलामी, कभी मैनेजमेंट का दबाव और कभी अंदरूनी राजनीति—इन सबके बीच कप्तान की भूमिका एक प्रयोगशाला जैसी बना दी जाती है। श्रेयस अय्यर का बयान भी इसी हकीकत की तरफ इशारा करता है कि उन्हें हर बार अपने आप को साबित करना पड़ा, चाहे दिल्ली हो, कोलकाता या पंजाब।

निष्कर्ष

श्रेयस अय्यर का सफर दिखाता है कि भारतीय क्रिकेट में कप्तानी सिर्फ मैदान पर नहीं, बल्कि मैनेजमेंट की राजनीति, पैसों का दबाव और आलोचकों के एजेंडे से भी जंग है। उन्होंने बार-बार अपनी काबिलियत साबित की है, लेकिन सवाल यही है—क्या भारतीय क्रिकेट सिस्टम सच में अपने नेताओं को उभारने का मौका देता है, या फिर उन्हें इस्तेमाल कर छोड़ देने की परंपरा बना चुका है? अय्यर का पलटवार इस बात की गवाही है कि भारतीय क्रिकेट की यह कमज़ोरी अभी भी बरकरार है।

एशिया कप 2025: टीम इंडिया से बाहर क्यों हुए कुलदीप यादव?

पिच की सच्चाई और टीम मैनेजमेंट का रवैया

एशिया कप 2025 की शुरुआत से पहले ही सबसे बड़ा सवाल उठ गया है—टीम इंडिया की प्लेइंग इलेवन में कुलदीप यादव क्यों नहीं हैं? दुबई की पिच पर हरी घास और तेज़ गेंदबाज़ों के लिए मददगार हालात को वजह बताया जा रहा है। लेकिन क्या यह तर्क सच में पर्याप्त है, या फिर यह एक बार फिर टीम मैनेजमेंट का आधा-अधूरा विश्वास है, जिसने एक चैंपियन गेंदबाज़ को दरकिनार कर दिया?

चैंपियंस ट्रॉफी से बेंच तक

मार्च में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल में कुलदीप यादव भारत के लिए हीरो बने थे। उनकी गेंदबाज़ी ने जीत की नींव रखी थी। लेकिन इंग्लैंड टेस्ट सीरीज़ में उन्हें एक भी मैच खेलने का मौका नहीं मिला। और अब एशिया कप में भी उन्हें बाहर बैठने की मजबूरी झेलनी पड़ रही है। सवाल यह है कि जब किसी खिलाड़ी का हालिया रिकॉर्ड शानदार हो, तो क्या पिच को बहाना बनाकर लगातार उसे नज़रअंदाज़ करना सही है?

एक स्पेशलिस्ट स्पिनर पर भरोसा क्यों?

रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत केवल एक स्पेशलिस्ट स्पिनर के साथ मैदान में उतरेगा—वह भी वरुण चक्रवर्ती। बाकी जिम्मेदारी ऑलराउंडर अक्षर पटेल और अभिषेक शर्मा जैसे पार्ट-टाइम स्पिनरों पर डाली जाएगी। यह रणनीति न सिर्फ जोखिम भरी है बल्कि यह दिखाती है कि टीम इंडिया अपने स्पिन आक्रमण की ताकत को खुद ही कमजोर कर रही है।

जडेजा की जगह, लेकिन मौका किसे?

रविंद्र जडेजा के रिटायरमेंट के बाद टीम को एक संतुलित ऑलराउंडर की ज़रूरत थी। लेकिन उनकी जगह शिवम दुबे को ट्राई करना क्या सही फैसला है? हां, दुबे बल्ले से योगदान दे सकते हैं, लेकिन गेंद से वे उतनी निरंतरता शायद ही दे पाएँ। ऐसे में कुलदीप जैसे मैच-विनिंग गेंदबाज़ को बाहर रखना और भी हैरान करता है।

जिटेश शर्मा बनाम संजू सैमसन

विकेटकीपर की दौड़ में भी विवाद खड़ा है। संकेत साफ हैं कि जिटेश शर्मा को संजू सैमसन पर तरजीह दी जा रही है। सवाल यह है कि क्या भारत लगातार ‘अनुभव से ज़्यादा प्रयोग’ वाली नीति से टीम को कमजोर कर रहा है?

मैनेजमेंट की असली प्राथमिकता

गौतम गंभीर और मोर्ने मोर्कल की टीम मैनेजमेंट रणनीति अब साफ हो रही है—वे बल्लेबाज़ी गहराई और तेज़ गेंदबाज़ों पर ज़्यादा भरोसा कर रहे हैं। लेकिन क्या भारत की ताकत हमेशा से स्पिन ही नहीं रही है? क्या यह बदलाव टीम की पहचान को ही बदलने की कोशिश है?

कुलदीप का इंतज़ार कितना लंबा?

मोर्ने मोर्कल ने कहा कि कुलदीप पेशेवर एथलीट हैं और वे लगातार मेहनत कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि कोई खिलाड़ी कितनी देर तक केवल “पेशेवर रवैये” से संतुष्ट रह सकता है, जबकि उसे बार-बार बाहर बैठाया जाए? अगर यही रवैया चलता रहा, तो क्या भारत अपने ही चैंपियनों को खोने की गलती नहीं कर रहा?

निष्कर्ष

एशिया कप 2025 के पहले मैच से पहले ही टीम इंडिया की चयन नीति सवालों के घेरे में है। पिच का हवाला देकर कुलदीप यादव जैसे सिद्ध खिलाड़ी को बाहर रखना न सिर्फ टीम की रणनीति पर सवाल उठाता है बल्कि यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि क्या भारत प्रयोगों में अपनी जीत की पहचान खो रहा है। क्रिकेट सिर्फ पिच पर नहीं, आत्मविश्वास और भरोसे पर भी जीता जाता है—और लगता है इस बार भारत वहीं चूक रहा है।

करुण नायर का टेस्ट करियर: क्या अब हमेशा के लिए खत्म हो चुका है?

भारत A की टीम में करुण नायर का नाम न होना यह साफ संकेत देता है कि कभी भारतीय क्रिकेट का बड़ा वादा माने जाने वाले इस बल्लेबाज की कहानी अब खत्म होने की ओर है। 33 वर्षीय नायर, जिन्होंने 2016 में इंग्लैंड के खिलाफ तिहरा शतक लगाकर सुर्खियां बटोरी थीं, आज सेलेक्टर्स की नज़र में पूरी तरह से गुम हो चुके हैं। यह वही खिलाड़ी हैं जिनसे भारतीय टेस्ट टीम को लंबी रेस का घोड़ा मिलने की उम्मीद थी, लेकिन वास्तविकता इससे कहीं ज़्यादा कठोर साबित हुई।

Credits - Hindustan Times

नायर को इस साल इंग्लैंड में एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी में लगभग नौ साल बाद वापसी का मौका मिला था, लेकिन छह पारियों में सिर्फ एक अर्धशतक निकाल पाना उनके लिए करियर का सबसे बड़ा झटका साबित हुआ। जब टीम इंडिया को घर में टेस्ट सीज़न के लिए नए चेहरों को तैयार करने की ज़रूरत है, तब नायर का बाहर होना शायद अंतिम संदेश है कि उनकी वापसी अब असंभव सी हो चुकी है।

सबसे बड़ी आलोचना यही है कि करुण नायर ने मिले मौकों को कभी भुनाया ही नहीं। तिहरे शतक की वह एक पारी आज भी उनकी पहचान है, लेकिन उसके बाद का ग्राफ गिरावट की दास्तान लिखता है। चोट का हवाला दिया जा सकता है—जैसे ओवल टेस्ट में उंगली की चोट और महाराजा टी20 लीग से बाहर रहना—लेकिन चयनकर्ताओं के लिए यह कोई ठोस वजह नहीं लगी। उनकी जगह उभरते हुए बल्लेबाज़ों और विकेटकीपर ध्रुव जुरेल जैसे खिलाड़ियों को मौका दिया गया है, जिन्हें भविष्य के लिए निवेश माना जा रहा है।

सोचने वाली बात यह है कि भारतीय क्रिकेट का सिस्टम अक्सर ऐसे खिलाड़ियों को भुला देता है जिन्होंने कभी चमक दिखाई लेकिन निरंतरता नहीं रख पाए। नायर का करियर उसी कड़वी हकीकत की याद दिलाता है कि भारतीय टीम में जगह बनाना जितना मुश्किल है, उतना ही कठिन है उसे बनाए रखना। सवाल उठता है—क्या हमारे सेलेक्टर्स खिलाड़ियों को एक विफल सीरीज़ के बाद ही किनारे कर देने की जल्दी में रहते हैं, या फिर खिलाड़ियों को खुद अपनी प्रतिभा साबित करने का धैर्य नहीं रहता?

करुण नायर की कहानी भारतीय क्रिकेट में एक चेतावनी की तरह है। अगर आप अवसरों को पकड़कर स्थिरता नहीं दिखाते, तो चाहे आप तिहरा शतक ही क्यों न बना चुके हों, इतिहास में दर्ज तो होंगे, लेकिन टीम इंडिया की वर्तमान तस्वीर से हमेशा के लिए गायब हो जाएंगे। यही सच्चाई है और यही शायद करुण नायर की यात्रा का निष्कर्ष भी।

श्रेयस अय्यर को इंडिया A की कप्तानी: क्या यह टेस्ट में वापसी का दरवाजा खोल देगा?

श्रेयस अय्यर को इंडिया A टीम की कप्तानी मिली है और यह कदम भारतीय क्रिकेट के फैन्स के लिए एक नई चर्चा का विषय बन गया है। 16 सितंबर से लखनऊ में ऑस्ट्रेलिया A के खिलाफ दो मल्टी-डे मैचों में अय्यर टीम का नेतृत्व करेंगे। हालांकि उन्हें एशिया कप 2025 के लिए नहीं चुना गया, फिर भी इंडिया A की कप्तानी उनके लिए टेस्ट टीम में वापसी का रास्ता खोल सकती है। क्रिकेट विश्लेषक आकाश चोपड़ा का मानना है कि अब 30 वर्षीय बल्लेबाज के लिए टेस्ट में जगह बनाने की राह साफ हो गई है।

श्रेयस अय्यर को इंडिया A की कप्तानी: क्या यह टेस्ट में वापसी का दरवाजा खोल देगा?

श्रेयस अय्यर को पिछले इंग्लैंड दौरे के पांच मैचों की एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी में शामिल नहीं किया गया था। उन्होंने आखिरी बार 2024 में टेस्ट खेला था, लेकिन चोट और रणजी ट्रॉफी में खेलने से बचने की वजह से उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया था। इसके अलावा उन्हें सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट से भी हटा दिया गया था। हालांकि, व्हाइट-बॉल क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन के कारण उन्होंने वापसी की।

इंडिया A की कप्तानी के साथ अय्यर को अब टेस्ट टीम में भी शामिल किए जाने की संभावना बढ़ गई है। वहीं, करुण नायर के लिए राह मुश्किल हो गई है। इंग्लैंड के खिलाफ चार पारियों में उन्होंने सिर्फ एक बार अर्धशतक बनाया और कुल 205 रन बनाए। 2016 में इंग्लैंड के खिलाफ ट्रिपल सेंचुरी बनाने वाले करुण नायर अब टेस्ट टीम में अपनी जगह खोते दिख रहे हैं।

चोपड़ा ने यह भी कहा कि हाल के दौरों में कप्तानी की भूमिका एक तरह से ‘म्यूजिकल चेयर’ बन गई है। पहले अभिमन्यु ईश्वरन कप्तान थे, अब अय्यर को मौका मिला है। No.3 और No.6 की पोजिशन अभी भी खुली हैं और इसी कारण अय्यर को टीम की कमान सौंपी गई। करुण नायर इस बार नजरअंदाज किए जा सकते हैं, जिससे उनके टेस्ट करियर पर भी सवाल उठ रहे हैं।

इस विकास से यह स्पष्ट होता है कि अय्यर का चयन सिर्फ कप्तानी तक सीमित नहीं है, बल्कि टेस्ट टीम में स्थायी जगह पाने का संकेत भी देता है। जबकि करुण नायर के लिए आगे की राह मुश्किल और अनिश्चित दिखाई देती है। भारत में होने वाले आगामी सीरीजों में अय्यर की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है, खासकर वेस्ट इंडीज और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ, जहां उनके अनुभव और बल्लेबाजी कौशल से टीम को लाभ मिल सकता है।

यह निर्णय भारतीय क्रिकेट की चयन प्रक्रिया और खिलाड़ियों के करियर पर भी एक गहन प्रभाव डालता है। अय्यर की कप्तानी के साथ यह साफ है कि करुण नायर को अब शायद और मौके नहीं मिलेंगे, जबकि युवा और प्रतिभाशाली खिलाड़ी अपने प्रदर्शन से टीम में अपनी जगह पक्की कर सकते हैं। ऐसे समय में जब चयन और कप्तानी पर लगातार विवाद होते रहते हैं, अय्यर की जिम्मेदारी और दबाव दोनों ही बढ़ गए हैं।

BCCI में फिर से खिलाड़ी-राष्ट्रपति की संभावना: परंपरा बनेगी या प्रशासनिक दक्षता आगे बढ़ेगी?

 क्या BCCI फिर से खिलाड़ी-राष्ट्रपति को चुनेगा? यह सवाल इस समय हर क्रिकेट प्रेमी के मन में घूम रहा है। 28 सितंबर को BCCI अपना नया अध्यक्ष चुनेगा और फिलहाल राजीव शुक्ला कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में हैं। पिछले दो कार्यकालों में, जब से RM लोढ़ा सुधारों के तहत संविधान में बदलाव हुआ, यह प्रथा रही है कि शीर्ष पद पर किसी प्रतिष्ठित पूर्व क्रिकेटर को बैठाया जाए। सौरव गांगुली और फिर 1983 विश्व कप विजेता रोज़र बिन्नी ने यह जिम्मेदारी संभाली, लेकिन अब बिन्नी 71 साल की उम्र की वजह से पात्र नहीं हैं।

BCCI में फिर से खिलाड़ी-राष्ट्रपति की संभावना: परंपरा बनेगी या प्रशासनिक दक्षता आगे बढ़ेगी?
Credits - Hindustan Times

राजीव शुक्ला, जो वर्तमान में उपाध्यक्ष हैं, संभवतः इस बार भी दावेदारी में होंगे, लेकिन क्या BCCI अपनी परंपरा छोड़कर एक अनुभवी खिलाड़ी के बजाय एक प्रशासनिक पृष्ठभूमि वाले को अध्यक्ष बनाएगा? यह वही सवाल है जो सभी की निगाहें आकर्षित कर रहा है। नामों की चर्चा हो रही है, लेकिन उच्च कमाई वाले पेशेवर शायद सम्मानजनक, लेकिन बिना वेतन वाले इस पद को लेने में उतना उत्साहित नहीं होंगे।

साथ ही, IPL के गवर्निंग काउंसिल का पुनर्गठन भी होना है। शुक्ला IPL अध्यक्ष बनने की संभावनाओं में भी हैं, लेकिन इसे कार्यालय धारक के रूप में नहीं गिना जाता, जिससे वर्तमान अध्यक्ष अरुण धूमल अपनी जगह बनाए रख सकते हैं। सचिव, कोषाध्यक्ष और संयुक्त सचिव की स्थिति में भी कुछ बदलाव हो सकते हैं, लेकिन ज़ोनल संतुलन बनाए रखना प्रमुख भूमिका निभाएगा।

खेल की दुनिया में हमेशा बदलाव की उम्मीद रहती है, लेकिन BCCI में यह बदलाव अक्सर धीमा और जटिल होता है। क्या एक प्रशासनिक अनुभव रखने वाला व्यक्ति फिर से क्रिकेट के खेल के फैसलों में प्रभावी रहेगा, या खिलाड़ी-प्रधान नेतृत्व ही बेहतर साबित होगा? यह सवाल न केवल अध्यक्ष की चयन प्रक्रिया पर बल्कि भारतीय क्रिकेट की रणनीति और भविष्य पर भी असर डालेगा।

इस बीच, खेल प्रेमियों की नजरें रोहित शर्मा और विराट कोहली पर भी हैं, जो ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इंडिया A की 50 ओवर की श्रृंखला में खेलने के लिए तैयार हो सकते हैं। दोनों खिलाड़ी अपनी फिटनेस और अनुभव के बल पर टीम को मजबूती देने के लिए उत्सुक हैं। मगर, जैसे BCCI में नेतृत्व की चुनौतियां जटिल हैं, वैसे ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लंबे समय तक खेलते रहने की योजना बनाना भी आसान नहीं है।

इसलिए सवाल यही है: क्या BCCI फिर से खिलाड़ी-राष्ट्रपति की परंपरा बनाए रखेगा या प्रशासनिक दक्षता को प्राथमिकता देगा? यह निर्णय न सिर्फ संगठन की छवि बल्कि भारतीय क्रिकेट की दिशा को भी प्रभावित करेगा।