



इंग्लैंड क्रिकेट का बड़ा सवाल: ‘बाज़बॉल’ के बाद अब ‘शास्त्री-बॉल’?
इंग्लैंड क्रिकेट एक बार फिर उसी चौराहे पर खड़ा है जहाँ बड़े फैसले आसान नहीं होते, लेकिन टालना भी मुश्किल हो जाता है। ऑस्ट्रेलिया में एक और भूलने लायक एशेज दौरे के बाद, सवाल सिर्फ हार का नहीं है—सवाल सोच का है, सिस्टम का है और सबसे अहम, दिशा का है।
जब प्रयोग हेडलाइन बन जाए और नतीजे सवाल
Brendon McCullum और बेन स्टोक्स की जोड़ी ने ‘बाज़बॉल’ के जरिए इंग्लैंड टेस्ट क्रिकेट में जान फूंकी, इसमें कोई शक नहीं। शुरुआती 11 में से 10 जीत—यह आंकड़ा अपने आप में क्रांति जैसा था। लेकिन क्रिकेट सिर्फ शुरुआत का खेल नहीं है, निरंतरता का खेल है। और यहीं आकर यह मॉडल लड़खड़ा गया।
ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसी टॉप टीमों के खिलाफ पांच मैचों की सीरीज़ में एक भी जीत नहीं—यह सिर्फ खराब फॉर्म नहीं, बल्कि रणनीतिक सीमाओं की कहानी है। 33 में से 16 हारें बताती हैं कि आक्रामकता अपने आप में समाधान नहीं होती।
ऑस्ट्रेलिया में जीतना: स्टाइल नहीं, सिस्टम चाहिए
इसी संदर्भ में पूर्व इंग्लिश स्पिनर मॉन्टी पनेसर का नाम उछालना—Ravi Shastri—भावनात्मक नहीं, बल्कि ठंडे तर्क पर आधारित है। सवाल सीधा है: ऑस्ट्रेलिया को ऑस्ट्रेलिया में कौन हराना जानता है?
शास्त्री के कोच रहते भारत ने दो बार ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज़ जीती। 2018–19 की ऐतिहासिक जीत और 2020–21 की वह वापसी, जहाँ ‘36 ऑल आउट’ के बाद भी टीम नहीं टूटी—ये उदाहरण सिर्फ मोटिवेशनल नहीं, मैनेजमेंट केस स्टडी हैं।
बाज़बॉल बनाम कंट्रोल: क्या इंग्लैंड को रिसेट चाहिए?
यह बहस अब ‘किसने क्या जीता’ से आगे बढ़ चुकी है। मुद्दा यह है कि क्या इंग्लैंड का मौजूदा दर्शन बड़े दौरे जीतने के लिए पर्याप्त है? या फिर उन्हें ऐसे कोच की ज़रूरत है जो आक्रामकता के साथ अनुशासन, और आज़ादी के साथ जवाबदेही ला सके?
शास्त्री का रिकॉर्ड बताता है कि वे खिलाड़ियों को सिर्फ खेलने की छूट नहीं देते, बल्कि उन्हें मानसिक रूप से टूर जीतने के लिए तैयार करते हैं। ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट जीतना संयोग नहीं होता—वहाँ तैयारी ही हथियार होती है।
ECB की असली परीक्षा अब शुरू होती है
England and Wales Cricket Board के लिए यह फैसला सिर्फ कोच बदलने का नहीं है। यह तय करने का वक्त है कि वे ‘एंटरटेनमेंट फर्स्ट’ मॉडल पर टिके रहना चाहते हैं या फिर ट्रॉफी-केंद्रित सोच अपनाना चाहते हैं।
मैक्कलम का कहना कि उनका भविष्य उनके हाथ में नहीं है—दरअसल यही इंग्लैंड क्रिकेट की सच्चाई है। 2027 तक का कॉन्ट्रैक्ट कागज़ पर मजबूत लगता है, लेकिन एशेज की 0–3 स्थिति उस कॉन्ट्रैक्ट से कहीं भारी है।
निष्कर्ष: नाम बड़ा नहीं, अनुभव ज़रूरी
रवि शास्त्री का नाम समाधान हो सकता है, लेकिन उससे भी बड़ा सवाल यह है—क्या इंग्लैंड अपनी क्रिकेटिंग आइडियोलॉजी पर पुनर्विचार को तैयार है? अगर जवाब ‘हां’ है, तो यह बदलाव सिर्फ कोच का नहीं, सोच का होगा।
क्योंकि ऑस्ट्रेलिया में क्रिकेट जीतने के लिए सिर्फ शॉट्स नहीं, सख़्त फैसले खेलने पड़ते हैं।
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