बराबरी की ओर एक क़दम… या सिर्फ़ आधा सच? महिलाओं की घरेलू क्रिकेट सैलरी पर BCCI का बड़ा फैसला

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भारतीय क्रिकेट में जब भी “पे पैरिटी” शब्द आता है, तो उम्मीद अपने आप बढ़ जाती है। और इस बार Board of Control for Cricket in India ने वाकई एक बड़ा ऐलान किया है। महिलाओं की घरेलू क्रिकेट सैलरी में भारी बढ़ोतरी। सुनने में यह ऐतिहासिक लगता है, लेकिन ज़रा ठहरकर देखें तो सवाल अब भी वहीं खड़े हैं—क्या यह बराबरी है, या बराबरी की तरफ़ इशारा भर?


नंबर बढ़े हैं, लेकिन तस्वीर पूरी नहीं बदली

नए ढांचे के तहत महिला घरेलू क्रिकेटर्स को वनडे और मल्टी-डे मैच के लिए 50,000 रुपये प्रतिदिन मिलेंगे। टी20 में यह रकम 25,000 रुपये है। तुलना करें तो पहले यही खिलाड़ी 20,000 या 10,000 में पूरा मैच खेलती थीं। यानी उछाल साफ़ है, और इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

लेकिन यहीं एक असहज सच्चाई सामने आती है। एक पूरे सीज़न में, अगर टीम सिर्फ़ लीग स्टेज खेले, तो एक सीनियर महिला खिलाड़ी की औसत कमाई लगभग 2 लाख रुपये ही बैठती है। सवाल यह नहीं कि यह पहले से ज़्यादा है या नहीं—सवाल यह है कि क्या यह काफ़ी है?


पे पैरिटी: शब्द बड़ा, दायरा छोटा

BCCI ने इसे “पे पैरिटी के क़रीब” बताया है। तकनीकी तौर पर देखें तो महिलाओं की मैच फीस अब पुरुषों के घरेलू स्तर के कुछ स्लैब्स से मिलती-जुलती है। लेकिन बराबरी सिर्फ़ प्रतिदिन की रकम से नहीं मापी जाती।

पुरुष क्रिकेट में मैचों की संख्या ज़्यादा है, सीज़न लंबा है, और घरेलू क्रिकेट से निकलकर IPL जैसी लीग्स तक पहुंचने का रास्ता खुला है। महिलाओं के लिए वही ढांचा अब भी सीमित है। यानी एक ही दिन की फीस भले बराबर दिखे, साल के अंत में बैंक बैलेंस अब भी बहुत अलग कहानी सुनाता है।


विश्व कप जीत के बाद आया फैसला—संयोग या दबाव?

यह फैसला भारत की ऐतिहासिक महिला विश्व कप जीत के कुछ ही हफ्तों बाद आया। Harmanpreet Kaur की अगुआई में टीम ने जो किया, उसने महिला क्रिकेट को अभूतपूर्व दृश्यता दी।

यह पूछना गलत नहीं है—अगर विश्व कप नहीं जीता होता, तो क्या यह बढ़ोतरी इतनी जल्दी आती?
कभी-कभी सुधार सही होते हैं, लेकिन उनका समय बता देता है कि वे सोच से आए हैं या दबाव से।


अंपायर और रेफरी: सुधार सबके लिए, लेकिन समान नहीं

BCCI ने अंपायरों और मैच रेफरी की फीस भी बढ़ाई है—40,000 से 60,000 रुपये प्रतिदिन तक। यह एक स्वागतयोग्य कदम है, लेकिन यहां भी वही पैटर्न दिखता है: संरचना सुधर रही है, पर गहराई में असमानता बनी हुई है।


तो क्या यह जश्न मनाने का पल है?

हां, यह एक सकारात्मक क़दम है। इसमें शक नहीं।
लेकिन इसे मंज़िल मान लेना ख़तरनाक होगा। असली बराबरी तब होगी जब महिला क्रिकेटर्स के लिए भी पूरा सीज़न आर्थिक रूप से सुरक्षित होगा, जब घरेलू क्रिकेट से अंतरराष्ट्रीय और प्रोफेशनल लीग्स तक का रास्ता सहज होगा, और जब “महिला क्रिकेट” को सुधार की श्रेणी में नहीं, बल्कि सिस्टम का स्वाभाविक हिस्सा माना जाएगा।


निष्कर्ष: क़दम सही दिशा में है, लेकिन रफ़्तार कम है

BCCI ने दरवाज़ा खोला है, लेकिन अभी पूरा रास्ता तय करना बाकी है।
बराबरी सिर्फ़ आंकड़ों से नहीं आती, नीयत और निरंतरता से आती है।
और फिलहाल, महिला घरेलू क्रिकेट के लिए यह फैसला उम्मीद तो देता है—पर संतोष नहीं।

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