सचिन का नाम, जल्दबाज़ी का दांव और बीसीसीआई की पुरानी आदतें

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भारतीय क्रिकेट में जब भी कोई असाधारण युवा बल्लेबाज़ उभरता है, एक नाम अपने-आप बहस में आ जाता है—सचिन। अब यही तुलना Vaibhav Suryavanshi के साथ शुरू हो चुकी है। Krishnamachari Srikkanth का कहना है कि जैसे Sachin Tendulkar को कम उम्र में मौका मिला, वैसे ही वैभव को भी “फास्ट-ट्रैक” किया जाना चाहिए। सुनने में यह रोमांचक लगता है, लेकिन सवाल यही है—क्या इतिहास से सिर्फ नाम उठाना काफी है, या पूरा संदर्भ भी देखना ज़रूरी है?


रिकॉर्ड, रन और रोमांच—लेकिन तस्वीर पूरी नहीं

वैभव सूर्यवंशी ने जो किया है, वह नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। Vijay Hazare Trophy में 84 गेंदों पर 190 रन, 36 गेंदों में शतक, और सबसे कम उम्र में लिस्ट-ए सेंचुरी—ये आंकड़े अपने-आप बोलते हैं। जूनियर लेवल से लेकर घरेलू क्रिकेट तक, उनका स्ट्राइक रेट और आत्मविश्वास आज के टी20 युग का सपना है।

लेकिन भारतीय क्रिकेट का इतिहास सिर्फ “तेज़ उभार” से नहीं, बल्कि “लंबी उड़ान” से बना है। सवाल यह नहीं कि वैभव में टैलेंट है या नहीं—सवाल यह है कि क्या मौजूदा सिस्टम उस टैलेंट को संभालने के लिए तैयार है?


सचिन की मिसाल: तुलना या शॉर्टकट?

सचिन तेंदुलकर 16 साल की उम्र में भारत के लिए खेले, यह सच है। लेकिन यह भी सच है कि उन्होंने रणजी, दलीप ट्रॉफी और टूरिंग टीमों में पहले ही खुद को हर हालात में साबित कर दिया था—और तब सोशल मीडिया का दबाव, 24x7 हाइप मशीन, और IPL-सितारों वाली अपेक्षाएँ नहीं थीं।

आज किसी किशोर को जल्दी इंटरनेशनल जर्सी पहनाना सिर्फ चयन का फैसला नहीं, बल्कि मानसिक, तकनीकी और करियर-मैनेजमेंट का जोखिम है। क्या हम सचिन की कहानी को समझ रहे हैं, या सिर्फ उसका एक लाइन वाला वर्ज़न इस्तेमाल कर रहे हैं?


बीसीसीआई की जल्दबाज़ी का इतिहास

यहाँ असली सवाल Board of Control for Cricket in India से है। बीते वर्षों में हमने कई “नेक्स्ट बिग थिंग” देखी हैं—कुछ टिके, कई दबाव में खो गए। जब कोई सीनियर खिलाड़ी फेल होता है, तो धैर्य की बात होती है। लेकिन जब कोई युवा चमकता है, तो उसे तुरंत समाधान बना दिया जाता है।

क्या वैभव को भी उसी चक्र में डालना सही होगा? या फिर एक स्पष्ट रोडमैप—ए-टीम, इंडिया ए टूर, मुश्किल कंडीशंस, और फिर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट—ज्यादा समझदारी होगी?


फास्ट-ट्रैक नहीं, फुल-ट्रैक ज़रूरी

वैभव सूर्यवंशी भारतीय क्रिकेट की पूंजी हैं, प्रोजेक्ट नहीं। उन्हें “जल्दी डेब्यू” की नहीं, बल्कि “सही डेब्यू” की ज़रूरत है। सचिन बनने का रास्ता उम्र से नहीं, निरंतरता, संघर्ष और सही फैसलों से बनता है।

बीसीसीआई अगर सच में वैभव को लंबी रेस का घोड़ा मानती है, तो उसे हाइप से नहीं, स्ट्रक्चर से बचाना होगा। वरना इतिहास गवाह है—हमने प्रतिभाएँ जल्दी खोजी हैं, लेकिन हमेशा उन्हें संभाल नहीं पाए।

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