फॉर्म, भरोसा और पहचान: शुबमन गिल बनाम सूर्यकुमार यादव की बहस क्यों अधूरी है

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भारतीय टी20 टीम का चयन हमेशा भावनाओं से भरा होता है, लेकिन इस बार मामला भावनाओं से ज्यादा पहचान और भरोसे का बन गया है। टी20 वर्ल्ड कप स्क्वॉड से Shubman Gill का बाहर होना सिर्फ एक नाम कटने की खबर नहीं है—यह उस सोच का आईना है, जिसमें ‘संभावना’ से ज्यादा ‘तत्काल प्रभाव’ को तरजीह दी जा रही है। सवाल ये नहीं कि गिल क्यों बाहर हुए, सवाल ये है कि वही कसौटी Suryakumar Yadav पर क्यों लागू नहीं हुई।


उम्मीदें बनाम आउटपुट: गिल की समस्या क्या थी?

2025 में 15 टी20 मैच, 291 रन, स्ट्राइक रेट 138 से कम—ये आंकड़े गिल के नाम के साथ न्याय नहीं करते। ओपनिंग में वे वह दबाव नहीं बना पाए जो आधुनिक टी20 मांगता है। Abhishek Sharma को अकेले आक्रमण की जिम्मेदारी उठानी पड़ी, जबकि पहले Sanju Samson के साथ यह काम साझा होता था। नतीजा? 220+ स्कोर की वह निरंतरता टूट गई, जो भारत की पहचान बन रही थी।
यहां चयनकर्ताओं की दलील समझ आती है—ओपनर का काम सिर्फ टिकना नहीं, मैच को पहले 10 ओवर में झुका देना है। गिल यह नहीं कर पाए।


लेकिन फिर सूर्या क्यों सुरक्षित रहे?

आंकड़े यहां और असहज करते हैं। सूर्या—218 रन, औसत 14 से कम, स्ट्राइक रेट 118 से नीचे। यानी कागज़ पर तस्वीर और भी कमजोर। तो फिर गिल बाहर और सूर्या अंदर—क्यों?
यहीं Mohammad Kaif की दलील सामने आती है: पहचान। सूर्या ‘प्रूवन मैच-विनर’ हैं, ICC रैंकिंग्स में राज कर चुके हैं, बड़े मैच जिताए हैं। गिल—टी20 में—अभी उस श्रेणी में नहीं आते। तुलना यहीं टूट जाती है।


पहचान का जाल: क्या यह तर्क खतरनाक नहीं?

यह तर्क सुनने में ठोस है, पर खतरनाक भी। क्योंकि यह चयन को वर्तमान से काटकर अतीत से जोड़ देता है। उदाहरण दिया जाता है Virat Kohli का—कोविड के दो साल बिना रन के भी भरोसा। फर्क यह है कि कोहली का टी20 टेम्पलेट वर्षों से टीम की जीतों में दर्ज था।
सूर्या के साथ दांव यह है कि क्या कप्तानी का दबाव उनकी आक्रामकता खा रहा है? क्या वे ऊर्जा गलत जगह खर्च कर रहे हैं? सवाल पूछे जा रहे हैं, जवाब नहीं मिल रहे—और वर्ल्ड कप दरवाज़े पर है।


कप्तानी बनाम बल्लेबाज़ी: एक टकराव?

काइफ का कहना है कि सूर्या को ‘ड्रॉप’ नहीं किया जा सकता, बल्कि ‘एनालाइज़’ करना चाहिए। यह बात सही है, लेकिन अधूरी। कप्तानी का बोझ अगर बल्लेबाज़ी को कुंद कर रहा है, तो क्या टीम के पास प्रयोग का समय है?
गिल के मामले में प्रयोग खत्म कर दिया गया—साफ़, निर्दयी और शायद सही। सूर्या के मामले में वही सख़्ती क्यों नहीं? क्या कप्तान होने से समय बढ़ जाता है?


चयन का संदेश: नाम भारी, भूमिका हल्की?

यह चयन एक संदेश देता है—टी20 में भूमिका से ज्यादा नाम बचाया जा सकता है। Ajit Agarkar की अगुवाई वाली समिति ने गिल पर ‘कोर्स करेक्शन’ किया, लेकिन सूर्या पर ‘कैरैक्टर सर्टिफिकेट’।
अंततः Axar Patel को उपकप्तान बनाना स्थिरता का संकेत है, पर सवाल वही है—क्या भारत टी20 वर्ल्ड कप ‘फॉर्म’ से खेलेगा या ‘फेम’ से?


निष्कर्ष: सही या सुरक्षित?

गिल का बाहर होना तर्कसंगत है। सूर्या का बने रहना परंपरा है। दोनों को एक ही तराज़ू पर तौलना शायद गलत हो, लेकिन दो अलग तराज़ू रखना भी जोखिम है। टी20 क्रूर है—यह यादें नहीं, असर गिनता है। और असर फिलहाल, किसी का भी पुख़्ता नहीं दिख रहा।

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