तीन टीमों के फाइनल तक का सफर
श्रेयस अय्यर ने बीते कुछ सालों में आईपीएल में अपनी पहचान सिर्फ बल्लेबाज़ के रूप में नहीं, बल्कि कप्तान के तौर पर भी बनाई है। दिल्ली कैपिटल्स को 2020 में पहली बार फाइनल तक पहुंचाना, कोलकाता नाइट राइडर्स के साथ 2025 में खिताब जीतना और फिर पंजाब किंग्स को एक दशक बाद फाइनल तक ले जाना—यह सब उनके नेतृत्व की क्षमता को दिखाता है। आंकड़े बताते हैं कि अय्यर ने हर टीम में फर्क डाला है, लेकिन सवाल यह है कि इतनी उपलब्धियों के बाद भी उन्हें बार-बार आलोचना क्यों झेलनी पड़ती है?
पंजाब में आज़ादी, KKR में उपेक्षा
पंजाब किंग्स के साथ उनका अनुभव बिल्कुल अलग था। वहां उन्हें पूरा समर्थन मिला—कोच, मैनेजमेंट और खिलाड़ियों का भरोसा, जिसकी वजह से वे फैसलों में खुलकर शामिल हो पाए। लेकिन कोलकाता नाइट राइडर्स के समय की बातें करते हुए अय्यर ने साफ कहा कि वे “पूरी तरह से मिक्स में नहीं थे।” यह बयान कहीं न कहीं टीम मैनेजमेंट की अंदरूनी राजनीति और भरोसे की कमी को उजागर करता है। सवाल उठता है कि जब कप्तान को ही हाशिये पर रखा जाए, तो टीम कैसे बेहतर प्रदर्शन करेगी?
आलोचना के पीछे की कहानी
अय्यर का कहना है कि “मैं बतौर कप्तान और खिलाड़ी बहुत कुछ ऑफर करता हूं।” यह आत्मविश्वास वाजिब है, लेकिन आलोचकों का तर्क यह है कि उन्होंने फाइनल में पहुंचाया जरूर, लेकिन खिताब दिलाने में असफल रहे—खासतौर पर पंजाब किंग्स, जो अब भी ट्रॉफी से महरूम है। लेकिन क्या एक खिताब न जीत पाने से उनकी बाकी उपलब्धियां बेकार हो जाती हैं? या यह सिर्फ आसान टारगेट बनाने का तरीका है?
भारी प्राइस टैग और दबाव
पंजाब ने अय्यर को 26.75 करोड़ रुपये की कीमत पर खरीदा। यह न सिर्फ मीडिया की सुर्खियों में रहा, बल्कि उनके ऊपर उम्मीदों का बोझ भी और बढ़ गया। हकीकत यह है कि इतनी भारी कीमत के बाद खिलाड़ी को अक्सर प्रदर्शन से ज़्यादा ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है। खिताब न जीतने का ठीकरा भी कप्तान के सिर पर ही फोड़ दिया जाता है।
कप्तानी या प्रयोगशाला?
आईपीएल फ्रेंचाइज़ियों में लगातार यह देखा गया है कि कप्तानों को स्थिर माहौल नहीं दिया जाता। कभी नीलामी, कभी मैनेजमेंट का दबाव और कभी अंदरूनी राजनीति—इन सबके बीच कप्तान की भूमिका एक प्रयोगशाला जैसी बना दी जाती है। श्रेयस अय्यर का बयान भी इसी हकीकत की तरफ इशारा करता है कि उन्हें हर बार अपने आप को साबित करना पड़ा, चाहे दिल्ली हो, कोलकाता या पंजाब।
निष्कर्ष
श्रेयस अय्यर का सफर दिखाता है कि भारतीय क्रिकेट में कप्तानी सिर्फ मैदान पर नहीं, बल्कि मैनेजमेंट की राजनीति, पैसों का दबाव और आलोचकों के एजेंडे से भी जंग है। उन्होंने बार-बार अपनी काबिलियत साबित की है, लेकिन सवाल यही है—क्या भारतीय क्रिकेट सिस्टम सच में अपने नेताओं को उभारने का मौका देता है, या फिर उन्हें इस्तेमाल कर छोड़ देने की परंपरा बना चुका है? अय्यर का पलटवार इस बात की गवाही है कि भारतीय क्रिकेट की यह कमज़ोरी अभी भी बरकरार है।
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