टीम इंडिया की नई रणनीति या असुरक्षा?
भारत के गेंदबाज़ी कोच मोर्ने मोर्कल ने एशिया कप 2025 से पहले साफ कर दिया है कि टीम शिवम दुबे को हार्दिक पंड्या-जैसा विकल्प मान रही है। यानी दुबे को न सिर्फ बल्ले से योगदान देना होगा, बल्कि गेंद से भी चार ओवर फेंकने की जिम्मेदारी उठानी होगी। सुनने में यह रणनीति लचीली लगती है, लेकिन क्या यह वास्तव में टीम की ताकत है या फिर संसाधनों की कमी छिपाने की कोशिश?
हार्दिक का खालीपन और दुबे पर बोझ
हार्दिक पंड्या भारतीय क्रिकेट में एक अनोखा संतुलन लाते थे—धमाकेदार बल्लेबाज़ी और भरोसेमंद गेंदबाज़ी। लेकिन अब टीम उनकी जगह भरने के लिए शिवम दुबे को आगे कर रही है। सवाल यह है कि क्या दुबे के पास वही क्लास, अनुभव और निरंतरता है जो हार्दिक को खास बनाती थी? एक खिलाड़ी को सिर्फ इसलिए “हार्दिक जैसा” कहना क्या न्यायसंगत है, जब उनके करियर का अधिकांश हिस्सा पार्ट-टाइम जिम्मेदारियों में ही बीता हो?
इंग्लैंड के खिलाफ प्रदर्शन—क्या काफी है?
फरवरी में इंग्लैंड के खिलाफ टी20 मैच में दुबे ने दो ओवर डालकर दो विकेट चटकाए थे। उस प्रदर्शन को अब उनकी गेंदबाज़ी का प्रमाण माना जा रहा है। लेकिन क्या सिर्फ एक मैच का आंकड़ा किसी बड़े टूर्नामेंट की रणनीति का आधार हो सकता है? यह सोच खुद टीम मैनेजमेंट की जल्दबाज़ी और असुरक्षा को दर्शाती है।
गंभीर और सूर्या का “लचीलापन” प्रयोग
गौतम गंभीर और सूर्यकुमार यादव की कप्तानी में टीम इंडिया अब पार्ट-टाइम गेंदबाज़ों पर ज़्यादा भरोसा दिखा रही है। अभिषेक शर्मा, रिंकू सिंह और यहां तक कि खुद सूर्या को भी ओवर डालने का मौका मिल रहा है। पर क्या यह वाकई लचीलापन है, या फिर यह संकेत है कि टीम के पास पक्के गेंदबाज़ी विकल्प कम पड़ रहे हैं? इस “लचीलापन” का नतीजा यह भी हो सकता है कि मैच के अहम पलों में कप्तान के पास भरोसेमंद विकल्प न हों।
शिवम दुबे पर दबाव और वास्तविकता
शिवम दुबे वर्ल्ड कप विजेता टीम का हिस्सा जरूर रहे हैं, लेकिन उन्हें गेंद से कम ही मौके मिले। अब अचानक उन्हें चार ओवर फेंकने वाला प्रमुख ऑलराउंडर बना देना कहीं न कहीं अवास्तविक उम्मीदें पैदा करता है। यदि वे फ्लॉप रहे, तो जिम्मेदारी सिर्फ उन पर नहीं, बल्कि मैनेजमेंट की नीतियों पर भी जाएगी।
निष्कर्ष
टीम इंडिया का शिवम दुबे को हार्दिक पंड्या-जैसा विकल्प बताना एक बड़ा दांव है, लेकिन इसमें खामियां भी साफ झलकती हैं। भारतीय क्रिकेट अक्सर किसी खिलाड़ी पर ज़रूरत से ज़्यादा दबाव डाल देता है और फिर असफल होने पर उसी खिलाड़ी को बलि का बकरा बना देता है। सवाल यह है कि क्या एशिया कप 2025 में भी यही कहानी दोहराई जाएगी? या फिर दुबे वाकई इस चुनौती को अवसर में बदलकर भारतीय क्रिकेट को नई दिशा देंगे? फिलहाल तो यह रणनीति भरोसे से ज़्यादा जोखिम भरी लग रही है।
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