भारत A की टीम में करुण नायर का नाम न होना यह साफ संकेत देता है कि कभी भारतीय क्रिकेट का बड़ा वादा माने जाने वाले इस बल्लेबाज की कहानी अब खत्म होने की ओर है। 33 वर्षीय नायर, जिन्होंने 2016 में इंग्लैंड के खिलाफ तिहरा शतक लगाकर सुर्खियां बटोरी थीं, आज सेलेक्टर्स की नज़र में पूरी तरह से गुम हो चुके हैं। यह वही खिलाड़ी हैं जिनसे भारतीय टेस्ट टीम को लंबी रेस का घोड़ा मिलने की उम्मीद थी, लेकिन वास्तविकता इससे कहीं ज़्यादा कठोर साबित हुई।
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Credits - Hindustan Times |
नायर को इस साल इंग्लैंड में एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी में लगभग नौ साल बाद वापसी का मौका मिला था, लेकिन छह पारियों में सिर्फ एक अर्धशतक निकाल पाना उनके लिए करियर का सबसे बड़ा झटका साबित हुआ। जब टीम इंडिया को घर में टेस्ट सीज़न के लिए नए चेहरों को तैयार करने की ज़रूरत है, तब नायर का बाहर होना शायद अंतिम संदेश है कि उनकी वापसी अब असंभव सी हो चुकी है।
सबसे बड़ी आलोचना यही है कि करुण नायर ने मिले मौकों को कभी भुनाया ही नहीं। तिहरे शतक की वह एक पारी आज भी उनकी पहचान है, लेकिन उसके बाद का ग्राफ गिरावट की दास्तान लिखता है। चोट का हवाला दिया जा सकता है—जैसे ओवल टेस्ट में उंगली की चोट और महाराजा टी20 लीग से बाहर रहना—लेकिन चयनकर्ताओं के लिए यह कोई ठोस वजह नहीं लगी। उनकी जगह उभरते हुए बल्लेबाज़ों और विकेटकीपर ध्रुव जुरेल जैसे खिलाड़ियों को मौका दिया गया है, जिन्हें भविष्य के लिए निवेश माना जा रहा है।
सोचने वाली बात यह है कि भारतीय क्रिकेट का सिस्टम अक्सर ऐसे खिलाड़ियों को भुला देता है जिन्होंने कभी चमक दिखाई लेकिन निरंतरता नहीं रख पाए। नायर का करियर उसी कड़वी हकीकत की याद दिलाता है कि भारतीय टीम में जगह बनाना जितना मुश्किल है, उतना ही कठिन है उसे बनाए रखना। सवाल उठता है—क्या हमारे सेलेक्टर्स खिलाड़ियों को एक विफल सीरीज़ के बाद ही किनारे कर देने की जल्दी में रहते हैं, या फिर खिलाड़ियों को खुद अपनी प्रतिभा साबित करने का धैर्य नहीं रहता?
करुण नायर की कहानी भारतीय क्रिकेट में एक चेतावनी की तरह है। अगर आप अवसरों को पकड़कर स्थिरता नहीं दिखाते, तो चाहे आप तिहरा शतक ही क्यों न बना चुके हों, इतिहास में दर्ज तो होंगे, लेकिन टीम इंडिया की वर्तमान तस्वीर से हमेशा के लिए गायब हो जाएंगे। यही सच्चाई है और यही शायद करुण नायर की यात्रा का निष्कर्ष भी।
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