पिच की सच्चाई और टीम मैनेजमेंट का रवैया
एशिया कप 2025 की शुरुआत से पहले ही सबसे बड़ा सवाल उठ गया है—टीम इंडिया की प्लेइंग इलेवन में कुलदीप यादव क्यों नहीं हैं? दुबई की पिच पर हरी घास और तेज़ गेंदबाज़ों के लिए मददगार हालात को वजह बताया जा रहा है। लेकिन क्या यह तर्क सच में पर्याप्त है, या फिर यह एक बार फिर टीम मैनेजमेंट का आधा-अधूरा विश्वास है, जिसने एक चैंपियन गेंदबाज़ को दरकिनार कर दिया?
चैंपियंस ट्रॉफी से बेंच तक
मार्च में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल में कुलदीप यादव भारत के लिए हीरो बने थे। उनकी गेंदबाज़ी ने जीत की नींव रखी थी। लेकिन इंग्लैंड टेस्ट सीरीज़ में उन्हें एक भी मैच खेलने का मौका नहीं मिला। और अब एशिया कप में भी उन्हें बाहर बैठने की मजबूरी झेलनी पड़ रही है। सवाल यह है कि जब किसी खिलाड़ी का हालिया रिकॉर्ड शानदार हो, तो क्या पिच को बहाना बनाकर लगातार उसे नज़रअंदाज़ करना सही है?
एक स्पेशलिस्ट स्पिनर पर भरोसा क्यों?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत केवल एक स्पेशलिस्ट स्पिनर के साथ मैदान में उतरेगा—वह भी वरुण चक्रवर्ती। बाकी जिम्मेदारी ऑलराउंडर अक्षर पटेल और अभिषेक शर्मा जैसे पार्ट-टाइम स्पिनरों पर डाली जाएगी। यह रणनीति न सिर्फ जोखिम भरी है बल्कि यह दिखाती है कि टीम इंडिया अपने स्पिन आक्रमण की ताकत को खुद ही कमजोर कर रही है।
जडेजा की जगह, लेकिन मौका किसे?
रविंद्र जडेजा के रिटायरमेंट के बाद टीम को एक संतुलित ऑलराउंडर की ज़रूरत थी। लेकिन उनकी जगह शिवम दुबे को ट्राई करना क्या सही फैसला है? हां, दुबे बल्ले से योगदान दे सकते हैं, लेकिन गेंद से वे उतनी निरंतरता शायद ही दे पाएँ। ऐसे में कुलदीप जैसे मैच-विनिंग गेंदबाज़ को बाहर रखना और भी हैरान करता है।
जिटेश शर्मा बनाम संजू सैमसन
विकेटकीपर की दौड़ में भी विवाद खड़ा है। संकेत साफ हैं कि जिटेश शर्मा को संजू सैमसन पर तरजीह दी जा रही है। सवाल यह है कि क्या भारत लगातार ‘अनुभव से ज़्यादा प्रयोग’ वाली नीति से टीम को कमजोर कर रहा है?
मैनेजमेंट की असली प्राथमिकता
गौतम गंभीर और मोर्ने मोर्कल की टीम मैनेजमेंट रणनीति अब साफ हो रही है—वे बल्लेबाज़ी गहराई और तेज़ गेंदबाज़ों पर ज़्यादा भरोसा कर रहे हैं। लेकिन क्या भारत की ताकत हमेशा से स्पिन ही नहीं रही है? क्या यह बदलाव टीम की पहचान को ही बदलने की कोशिश है?
कुलदीप का इंतज़ार कितना लंबा?
मोर्ने मोर्कल ने कहा कि कुलदीप पेशेवर एथलीट हैं और वे लगातार मेहनत कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि कोई खिलाड़ी कितनी देर तक केवल “पेशेवर रवैये” से संतुष्ट रह सकता है, जबकि उसे बार-बार बाहर बैठाया जाए? अगर यही रवैया चलता रहा, तो क्या भारत अपने ही चैंपियनों को खोने की गलती नहीं कर रहा?
निष्कर्ष
एशिया कप 2025 के पहले मैच से पहले ही टीम इंडिया की चयन नीति सवालों के घेरे में है। पिच का हवाला देकर कुलदीप यादव जैसे सिद्ध खिलाड़ी को बाहर रखना न सिर्फ टीम की रणनीति पर सवाल उठाता है बल्कि यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि क्या भारत प्रयोगों में अपनी जीत की पहचान खो रहा है। क्रिकेट सिर्फ पिच पर नहीं, आत्मविश्वास और भरोसे पर भी जीता जाता है—और लगता है इस बार भारत वहीं चूक रहा है।
No comments:
Post a Comment