Hardik + Bumrah Missing!

भारतीय क्रिकेट की ये अजीब आदत है—जब भी टीम को सबसे ज़्यादा स्थिरता चाहिए होती है, तभी सबसे बड़े फैसले ऐसे आते हैं जो बाहर से “रणनीतिक” दिखते हैं, लेकिन अंदर से एक अजीब-सी अनिश्चितता पैदा कर देते हैं। हार्दिक पंड्या की वापसी फिर से टल गई है, जसप्रीत बुमराह को आराम दिया गया है, और इस बीच फैंस से लेकर एक्सपर्ट तक एक ही सवाल पूछ रहे हैं—क्या वाकई ये प्लानिंग है या बस हालात के सामने हाथ खड़े कर दिए गए हैं? दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ जो तीन मैचों की ODI सीरीज़ 30 नवंबर से शुरू होने वाली है, उसमें भारत दो ऐसे नामों के बिना उतरेगा जिन्हें सिर्फ खिलाड़ियों की सूची में देखकर ही विरोधियों की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं। और मज़े की बात ये है कि इस पूरी कहानी में “वापसी”, “इंजरी”, “वर्कलोड मैनेजमेंट” जैसे शब्द इतने बार आए हैं कि अब समझ नहीं आता क्रिकेट खेल रहे हैं या किसी हाई-स्टेक्स मेडिकल ड्राफ्ट का पीछा कर रहे हैं।

हार्दिक पंड्या की कहानी तो और भी दिलचस्प हो गई है। एशिया कप में लगी क्वॉड्रिसेप्स इंजरी ने उन्हें फाइनल ही नहीं, बल्कि पूरा ऑस्ट्रेलिया टूर भी बाहर बैठा दिया। ठीक है, इंजरी होती है, समय लगता है—लेकिन सवाल ये है कि हर बार उनकी रिहैब के साथ इतना सस्पेंस क्यों जुड़ जाता है? BCCI के सूत्र कह रहे हैं कि हार्दिक अभी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में RTP रूटीन कर रहे हैं और सीधे 50 ओवर खेलने देना खतरा हो सकता है। बात तर्कसंगत है, लेकिन सच ये भी है कि पिछले एक साल में हार्दिक का ODI गेम लगभग ग़ायब सा हो गया है, और अब कहा जा रहा है कि वो अगले IPL के बाद ही 50 ओवर वाले फॉर्मैट पर दोबारा ध्यान देंगे। यानी टीम इंडिया के लिए उनका वनडे रोल बस भविष्य की तारीखों पर टंगा है—एक ऐसा पोस्टर जो हर महीने आगे खिसकता जाता है। क्या इस तरह विश्व कप 2027 की तैयारी होती है? शायद नहीं। लेकिन भारतीय क्रिकेट में स्टार खिलाड़ियों पर निर्भरता इतनी गहरी है कि हम सवाल पूछते-पुछते भी थक जाते हैं।

और अब आते हैं बुमराह पर—जो हर सीरीज़ के साथ ये याद दिलाते हैं कि तेज गेंदबाज भारत की सबसे कीमती मुद्रा हैं। उन्हें भी इस दक्षिण अफ्रीका ODI सीरीज़ से आराम दिया जा रहा है, क्योंकि ये सीरीज़ टीम की प्राथमिकता सूची में काफी नीचे है। मतलब ये कि रणनीति साफ है: “जो अहम है, वो T20 है… बाकी बाद में देखेंगे।” ठीक है, T20 वर्ल्ड कप सामने है, लेकिन ODI को यूँ हल्के में लेना भी अजीब लगता है—खासतौर पर तब जब टीम 2027 विश्व कप की तैयारी शुरू करने की बात कर रही है। और फिर यही चयन नीति बाद में हमारे सामने ऐसे सवाल छोड़ जाती है जिनका जवाब कोई नहीं देता—जैसे कि बड़े टूर्नामेंटों में टीम अचानक ‘अधूरी’ क्यों लगती है?

हार्दिक अब Syed Mushtaq Ali Trophy में जाकर पहले अपनी फिटनेस साबित करेंगे, फिर दक्षिण अफ्रीका और न्यूज़ीलैंड के खिलाफ T20 खेलेंगे, और वहीं से IPL की ओर। यानी ODI फिर से दरकिनार। कुछ लोग कहेंगे कि ये आधुनिक क्रिकेट का हिस्सा है, लेकिन कहीं न कहीं ये एहसास भी होता है कि हम अपनी ही टीम के सबसे अहम खिलाड़ियों का एक वैकल्पिक शेड्यूल बना चुके हैं—जहाँ उनकी प्राथमिकताएँ टीम से ज़्यादा फ्रैंचाइज़ी और T20 कैलेंडर से जुड़ी दिखती हैं। और बुमराह? वो तो आज भी वही भरोसेमंद योद्धा हैं, लेकिन उन्हें बार-बार “आराम” पर भेजकर हम ये संकेत ज़रूर दे रहे हैं कि तेज गेंदबाजों को भारत में खेल से ज़्यादा ‘न खेलने’ की जरूरत है।

कुल मिलाकर ये पूरा मामला ऐसा लगता है जैसे टीम इंडिया किसी बड़े बदलाव से पहले खुद को संभालने की कोशिश कर रही है, लेकिन ये कोशिश धीरे-धीरे एक आदत में बदल रही है—जहाँ न खिलाड़ी पूरी तरह मौजूद होते हैं, न टीम रणनीति पूरी तरह साफ। और फैंस को तो हर बार वही जुमला सुनने को मिलता है: “ये सब प्लान का हिस्सा है।” शायद सच भी हो, लेकिन फिर भी मन में एक कड़वाहट रह जाती है कि इतनी संभावनाओं वाली टीम हमेशा आधी ताकत के साथ क्यों उतरती है? क्यों हर वापसी एक अधूरी वापसी बनकर रह जाती है? और क्यों हमें हर बार उम्मीद और चिंता के बीच झूलना पड़ता है? अगले कुछ महीनों में तस्वीर साफ होगी, लेकिन फिलहाल तो इतना ही लगता है कि टीम इंडिया की प्लानिंग एक बार फिर ‘रीथिंक’ मोड में फंसी हुई है—और ये कहानी अभी खत्म होने वाली नहीं।

भारतीय क्रिकेट में ये जो “लंबी तस्वीर” दिखाने का खेल चलता है, न, उसकी सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि फ्रेम हमेशा धुंधला रहता है। अभी कहा जा रहा है कि पंड्या और बुमराह को आराम देकर टीम भविष्य के लिए खुद को तैयार कर रही है, लेकिन सच तो ये है कि लगातार बदलते प्लान और अनगिनत रोटेशन से टीम का संतुलन पहले से ज़्यादा अस्थिर दिखने लगा है। हर बार किसी न किसी स्टार खिलाड़ी की अनुपस्थिति को “रणनीति” का नाम देकर समझाया जाता है—पर क्या यही रणनीति वाकई भारत को बड़ा टूर्नामेंट जितवा पाएगी? या फिर ये सिर्फ एक तरीका है खिलाड़ियों की बार-बार बदलती उपलब्धता को छुपाने का?

दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ ये ODI सीरीज़ वैसे भी ‘कम महत्व’ वाली बताई जा रही है, लेकिन सवाल ये है कि कब तक भारत ODI फॉर्मेट को एक ‘ब्रेकिंग पैड’ की तरह इस्तेमाल करता रहेगा? पिछले दो साल से ODI क्रिकेट को सिर्फ उतना ही महत्व दिया जा रहा है जितना कि किसी पुराने दोस्त की शादी की दावत को—जहाँ जाना तो ज़रूरी है, पर दिल कहीं और लगा हुआ है। और सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये वही देश है जहाँ फैंस अब भी वनडे क्रिकेट को लेकर जुनूनी हैं, जहाँ 2011 की यादें आज भी ताज़ा हैं। फिर भी जब भी मौका आता है, टीम का आधा हिस्सा आराम पर भेज दिया जाता है जैसे ODI कोई नेट प्रैक्टिस हो।

हार्दिक की बात करें तो हर रिहैब, हर अपडेट, हर बयान इस तरह आता है जैसे हम किसी बड़े प्रोजेक्ट की प्रोग्रेस रिपोर्ट पढ़ रहे हों। “वर्कलोड बढ़ाना होगा”, “50 ओवर अभी जोखिम है”, “पहले T20 पर फोकस रहेगा”—ये सब सुनकर लगता है कि भारतीय क्रिकेट अब पूरी तरह दो धड़ों में बंट गया है: एक वो जिसमें खिलाड़ी अपनी फ्रैंचाइज़ी और T20 भविष्य पर केंद्रित हैं, और दूसरा वो जिसमें राष्ट्रीय टीम किसी तरह उस गैप को भरने और चीज़ें जोड़ने की कोशिश कर रही है। और ये दूरी हर महीने बढ़ती ही जा रही है। क्या हार्दिक की भूमिका अब सिर्फ T20 तक सीमित होकर रह जाएगी? क्या वनडे क्रिकेट में भारत फिर कभी एक पूरा, बैलेंस्ड XI उतार पाएगा? ये सवाल जितने सरल लगते हैं, उतने ही उलझे हुए हैं।

जहाँ तक बुमराह की बात है, उनकी हर अनुपस्थिति दिल पर भारी पड़ती है—क्योंकि वो सिर्फ एक गेंदबाज नहीं, टीम इंडिया की धड़कन हैं। लेकिन उन्हें लगातार आराम देकर क्या हम इस धड़कन को और कमजोर कर रहे हैं? या इस उम्मीद में बैठे हैं कि कम खेलेंगे तो ज़्यादा टिकेंगे? इन फैसलों में तर्क है, पर ये भी सच है कि बुमराह जैसे खिलाड़ी को टीम से जितना दूर रखा जाएगा, उतनी ही देर तक मुकाबले अधूरे लगते रहेंगे। और फिर नए गेंदबाजों पर जो जिम्मेदारी पड़ती है, वो या तो समय से पहले दबाव में टूट जाते हैं या फिर उन्हें किसी बड़े टूर्नामेंट से पहले ही भुला दिया जाता है।

कुल मिलाकर ये पूरी स्थिति भारतीय क्रिकेट के एक पुराने रोग को उजागर करती है—यानी आधे-अधूरे प्लान, आधी-अधूरी फिटनेस अपडेट्स और आधी-अधूरी उपलब्धता वाला सिस्टम। ये ऐसे है जैसे किसी कार का इंजन ज़रूर पावरफुल हो, लेकिन हर दूसरी हफ्ते सर्विस सेंटर में खड़ा मिल जाए। और फैंस? वो तो आज भी उम्मीद बांधे बैठे हैं कि शायद अगली सीरीज़ में टीम पूरी ताकत के साथ उतरेगी। शायद अगली बार कोई अधूरी कहानी पूरी होगी। लेकिन सच ये है कि जब तक प्लानिंग और प्राथमिकताएँ साफ नहीं होंगी, तब तक हर सीरीज़, हर चयन और हर वापसी बस एक नए सवाल को जन्म देती रहेगी।

और इस सबके बीच सबसे बड़ा खतरा यही है कि टीम इंडिया धीरे-धीरे एक ऐसे मोड़ पर पहुँच सकती है जहाँ खिलाड़ी उपलब्धता का ग्राफ टीम की जरूरतों से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाए। और अगर वो दिन आ गया, तो शायद भारतीय क्रिकेट का सबसे डरावना दौर शुरू होगा—जहाँ टीम मजबूत है, खिलाड़ी दमदार हैं, लेकिन सब कुछ अपने-अपने कैलेंडर पर चलता है, साथ नहीं।

और आखिर में बस इतना ही कहूँगा कि भारतीय क्रिकेट की ये उलझी हुई कहानी जितनी दिलचस्प है, उतनी ही परेशान करने वाली भी। लेकिन अगर आप भी चाहते हैं कि ऐसे मुद्दों पर बेबाक, ईमानदार और गहराई वाली बातें लगातार मिलती रहें, तो फिर सपोर्ट दिखाना ज़रूरी है। इसलिए वीडियो अच्छा लगा हो तो लाइक ज़रूर करें, अपने दोस्तों के साथ शेयर करें, और हमारे चैनल PatilPulse को सब्सक्राइब करके बेल आइकन दबा दें, ताकि हर नया वीडियो सबसे पहले आप तक पहुँचे। आपका एक क्लिक हमें और बेहतर कंटेंट बनाने की ताकत देता है।

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